शनिवार, 10 जुलाई 2010

फ़साद की जड़


ये आदमी का नाम तारकेश्वर गिरी है ये वन्दे मातरम और माँ को नमन करने के नाम पर हिन्दू और मुस्लिम में झगडा डालने की कोशिश कर रहा है ! अरे तारकेश्वर गिरी जी ये सब छोड़ो देश के लिए कुछ सोचो कुछ करो !







भाई वाह , आखिर दिल की बात एक ब्लोगेर (मुस्लिम ब्लोगेर ) ने कह ही दी की हम माँ को नमन नहीं कर सकते चाहे जो भी हो जाये । हमारे लिए तो अल्लाह के सिवाय और कोई नहीं है। ये एक टिप्पड़ी मिली है मेरे प्रिय मित्र श्रीमान सहनावज जी के ब्लॉग पे ।
तारकेश्वर जी, दिखावे के लिए क्यों गंवाना चाहते हैं "वन्दे मातरम"?

सहसपुरिया जी, आप अपनी ही बात पर सहमती नहीं बना पा रहे हैं. एक तरफ तो कह रहें हैं की ( की जब कि ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि अगर वह मनुष्यों में से किसी को नमन करने की अनुमति देता तो वह पुत्र के लिए अपनी माँ और पत्नी के लिए अपने पति को नमन करने की अनुमति देता.) लेकिन दूसरी तरफ खुदी कह रहे हैं की (हम अपनी माँ से प्यार करते हैं, परन्तु उस प्रेम को दर्शाने के लिए उनकी पूजा नहीं करते हैं. यह हमारी श्रद्धा नहीं है कि हम ईश्वर के सिवा किसी और को नमन करें, यहाँ तक कि माँ को भी नमन नहीं कर सकते हैं.)

येही तो समस्या है आप जैसे अरबियन सोच रखने वालो की. जो की माँ को भी नमन नहीं करते हैं. और येही वजह है आप की, कि आप वन्दे मातरम का बिना सोचे समझे विरोध करते हैं.
Blogger ab inconvenienti said...

अरेबियन सोच...उजाड़ रेगिस्तानी बंजर रेतीली सोच... भारत भी रेगिस्तान बनता जा रहा है धीरे धीरे

09 July, 2010 21:10

Blogger राज भाटिय़ा said...

अजी हमे क्या यह उन की सोच है जो चाहे करे, जो चाहे ना करे

09 July, 2010 21:30

Blogger भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पत्थर पर सर फोड़ कर देख लिया...
महफूज जी, फिरदौस और फौजिया जैसे गिनती के लोग हैं, बाकी अधिकतर तालिबानी सोच रखते हैं..

09 July, 2010 22:12

Blogger सहसपुरिया said...

गिरी जी आपकी हमेशा यही यही समस्या रही है इक आप पढ़ें बगेर ही कमेंट करते हैं . पहली बात तो ये कमेंट शाहनवाज़ भाई के ARTICLE से ही QUOTE किया था.
दूसरी बात ये इस में आपके सवाल का जवाब है. आप से अनुरोध है की आप इक बार दुबारा सब पर नज़र डालें .

09 July, 2010 22:45

Blogger sproutsk said...

tarkeswar ji sadar pranam,,
aapka comment mila hardik dhanyawaad aap jaise log rahenge to likhne ki himmat badhegi,, plz mera blog jarur padhen

10 July, 2010 11:19

Blogger sproutsk said...

giri ji sadar pranam,,
aapke comment ke liya hardik dhanyawaad,, aapke jaise log blog padhenge to likhne ki himmat badhegi,, plz mera blog padhte rahen

10 July, 2010 11:21

Blogger Dr. Ayaz ahmad said...

@गिरी जी शायद आपने मुलाकात के समय हमारे द्वारा भेंट की पत्रिका वंदेईश्वरम् नही पढ़ी कृप्या उसे ध्यान से पढ़ें आपको आपके प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा

10 July, 2010 11:23

2 टिप्‍पणियां:

Aslam Qasmi ने कहा…

चलो चलते हैं चल कर वतन पर जान देते हैं
बहूत आसान है बंद कमरों में वन्देमातरम कहना

Aslam Qasmi ने कहा…

एक महाशय ने इस्लाम धर्म पर टिप्पणी करते हुए उसके पर्वर्तक हजरत मुहम्मद साहब सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम के वतन के हवाले से इस्लामी कवानीन का मजाक उड़ाया है,उन के शब्दों में यह अरेबियन सोच हे और उजाड़ ,रेगिस्तानी ,बंजर ,और रेतीली सोच हे ,,,,, अरेबियन सोच ,उजाड़ ,बंजर ,रेतीली सोच ,इन उपाधियों का शुक्रिया ,,,,?,,,,,मगर मेरे भाई में यह भी बतादुं कि यह वही रेगिस्तानी सोच थी जिस ने सब से पहले दुनिया को यह पैगाम दिया कि सारे इनसान बराबर हैं ,न कोई स्वर्ण हे न कोई शूद्र ,जिसे आज न केवल भारत अपितु सारी दुनिया मानती हे , वरना , भारतवर्ष को तो आप जैसी सोच के लोगों ने चार खानों में बाट कर तबाह रख दिया था , और हाँ यह उसी रेगिस्तानी की सोच थी कि मां के पेट में लड़का हो या लड़की , उसे दुनिया में आने का पूरा पूरा हक हे ,जो उसका यह हक उस से छीने वह अपराघी हे , आज आप भी इसे ही मानते हें ,आखिर क्यों आपने उस रेगिस्तानी की बात मानी,, ? ,,,और उस बंजर रेतीले अरेबियन क्षेत्र के निवासी की सोच के कुर्बान जाइये ,कि उस ने सारे संसार में सब से पहले महिला अधिकारों की आवाज़ उठाई और कहा कि बाप की जायदाद में बेटे की भाँती बेटी भी हिस्सेदार है ,आज आप के देश के नेताओं ने संविधान में संशोधन करके इस रेगिस्तानी सोच को क्यों अपना लिया ,,?,, और उस रेगिस्तानी ने ही हमें इस बात का पाबंद किया कि अगर किसी महिला का पति मर जाये तो तुम्हें कोई हक नहीं कि तुम उस महिला को भी मार डालो ,,हम ने यह उसी से सीखा हे ,,क्यों कि सब से पहले उसी ने इस सम्बन्ध में आवाज़ उठाई थी वर्ना हम तो इस से पहले विधवा पत्नी को उस के पति की चिता के साथ ही जिंदा जला दिया करते थे ,,आज भारत में भी इसी कानून को फालो किया जाता हे ,यह तो रेगिस्तानी सोच थी आप इसे छोड़ क्यों नहीं देते ,? ,,
इन सब बातों को सामने रखये और सोचिये कि सच्चाई सच्चाई होती हे वह अरेबियन या भारतीय में नहीं बाटी जासकती ,इस लिए बुद्धिमान वह हे जो जितनी जल्दी हो सके सच्चाई को स्वीकार करले ,अगर आप सच्चाई को क्षेत्रों में बांटेंगें तो में पूछूंगा कि अणु ,परमाणु की थ्योरी तो यूरोपियन हे फिर आप को उसे भी न मानना चाहिए ,,? ,, इन्फार्मेशन टेक्नोलोजी भी बहार से आई हे इसे भी छोड़ देना चाहिए ,,,?,,,,इस लिए मेरे भाई अक़ल से काम लें ,और क्षेत्रों में न बट कर सच्चाई को स्वीकार करें और मान लें कि उस ,बंजर रेगिस्तान के रहने वालेने जो कुछ भी कहा है उस का एक एक शब्द सही है ,,