बुधवार, 30 जून 2010

जनाब का









चेहरा कितना हसीन है मेरे जनाब का
खिलता हुआ कंवल है हुस्नो शबाब का

एक नूर सी चमक आँखों ने उनकी पाई
चांदनी की रौनक जंमी पे उतर आई
जलती हुई शमां हो जैसे हिजाब का
चेहरा कितना हसीन है मेरे जनाब का

उनकी तरफ जो देखे दुनिया को भूल जाये
बेखुदी में गुम हो वो कुछ भी समझ न पाये
चढ़ता हुआ नशा हो जैसे शराब का
चेहरा कितना हसीन है मेरे जनाब का
लोकेश उपाध्याय

पोस्ट पर युद्ध

खुशदीप की पोस्ट पर युद्ध हो राहा है तो मैं सोचा आप को भी बता दू

ajit gupta said...

अच्‍छी जानकारी, हमने भी अपना ब्‍लाग इसपर डाल दिया है।

डा० अमर कुमार said...


अच्‍छी जानकारी..
पर देर सवेर ब्लॉगवाणी अवश्य आयेगी

Udan Tashtari said...

हम इन्तजार करेंगे तेरा कयामत तक..खुदा करे कि कयामत हो और ती आये...


ये ब्लॉगवाणी के लिए है...

boletobindas said...

कयामत हो न हो . पर तु जरुर आए...

रचना said...

शुक्रिया मैथिली जी एंड सिरिल

सूर्यकान्त गुप्ता said...

अच्छी जानकारी के लिये शुक्रिया। मैने भी अपना निवेदन भेजा है हमारी वाणी को।

निर्मला कपिला said...

अच्छी जानकारी है मै भी देखती हूँ। शुभकामनायें

Shah Nawaz said...

खुशदीप जी, अगर ब्लोग्वानी पर आपकी खबर सही है, तो वाकई यह बहुत ही दुखद है. ब्लोग्वानी और चिटठा जगत जैसे संकलकों ने हमें ब्लॉग जगत की आदत डाली है. जबसे ब्लोग्वानी बंद है, तभी से कुछ भी लिखने में मज़ा ही नहीं आ रहा है.

"सच बात तो यह है की ब्लोग्वानी की आदत है हमें."

ब्लोग्वानी पर मेरी हास्य कविता: चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी

आशा है यह जल्द ही वापसी करेगी. वहीँ हमारी वाणी का प्रयास भी अच्छा है और उस पर आपके सुझाव बेहतरीन हैं.

खुशदीप सहगल said...

@शाहनवाज़ भाई,
ये मेरी ख़बर नहीं है...ये मयखाना ब्लॉग के मुनीश जी की है...ऊपर मैंने उनकी पोस्ट का लिंक दिया है...उसमें उन्होंने सिरिल जी से हुई बातचीत का हवाला दे रखा है...

जय हिंद...

रंजन said...

उम्मीद पर आसमान टिका है..

अन्तर सोहिल said...

हमारीवाणी की तुलना ब्लागवाणी से करना बिल्कुल अनुचित है।
फीडक्लस्टर पर आप खुद का एग्रीगेटर खुशदीपवाणी या आकाशवाणी कुछ भी बना सकते हैं और जिस मर्जी ब्लाग की फीड ले सकते हैं।

प्रणाम

Suresh Chiplunkar said...

मुनीश जी की खबर सही प्रतीत होती है…

लेकिन ब्लॉगवाणी ने जो लोकप्रियता और मुकाम हासिल किया उतना पहले किसी भी एग्रीगेटर ने नहीं किया। अब नये आने वाले इंडली, हमारीवाणी आदि में भी कई लोचे हैं, मेरे मत में किसी भी एग्रीगेटर को सफ़ल होने के लिये कुछ बातें जरूरी हैं -

1) सर्वर की स्पीड अच्छी होना चाहिये, अभी चिठ्ठाजगत भी काफ़ी स्लो चलता है, जबकि ब्लागवाणी के साथ यह समस्या नहीं थी…

2) एग्रीगेटर पर पोस्ट अपने-आप आ जाना चाहिये, या एक क्लिक करने से आ जायें, ऐसा नहीं कि इंडली की तरह लिंक भेजना पड़े…

3) रजिस्ट्रेशन और ब्लॉग का पंजीकरण एकदम आसान होना चाहिये।

4) पसन्द-नापसन्द अथवा ऊपर-नीचे वाला फ़ण्डा पूरी तरह खत्म करके, सिर्फ़ "अधिक पढ़े गये" या "इतनी बार पढ़े गये" का एक ही कालम होना चाहिये। इसमें भी यदि कोई एक ही कम्प्यूटर और आईपी से अपनी ही पोस्ट खोले-बन्द करे तो उसे "पढ़े गये" की गिनती में शामिल नहीं किया जाये। "टिप्पणी संख्या" वाली सुविधा भी बेकार सिद्ध हुई है, क्योंकि कुछ "मूर्ख" तो अपने ही ब्लॉग पर खामखा ही या तो बेनामी टिप्पणियाँ करते रहते हैं या उनके चमचे उसी लेख में से एक-दो लाइन उठाकर टिप्पणी के रुप में चेंप देते हैं।

5) आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि "यह मेरा एग्रीगेटर है, मैं जिसे चाहूंगा रखूंगा, जिसे चाहूंगा निकाल दूंगा, जिसे मेरी नीतियाँ पसन्द ना हो वह भाड़ में जाये…" वाला Attitude रखना पड़ेगा, पड़ने वाली गालियाँ ignore करने की क्षमता भी विकसित करनी होंगी, क्योंकि भारत के लोग "इतने हरामखोर" हैं कि मुफ़्त में मिलने वाली चीज़ में भी खोट निकालने से बाज नहीं आते।

जो भी एग्रीगेटर इन बिन्दुओं का ख्याल रख लेगा, वह निश्चित ही सफ़ल होगा…

हमारीवाणी.कॉम said...

बढ़िया प्रस्तुति!



क्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलन के नए अवतार हमारीवाणी पर अपना ब्लॉग पंजीकृत किया?



हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है।

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sajid said...

Suresh Chiplunkar ji आप भी तो भारतीय ही है फिर भी आप ने ऐसा लिखा " भारत के लोग "इतने हरामखोर" हैं कि मुफ़्त में मिलने वाली चीज़ में भी खोट निकालने से बाज नहीं आते। " तो फिर आप ने ये क्या लिखा है " अभी चिठ्ठाजगत भी काफ़ी स्लो चलता है, " ऐसा नहीं कि इंडली की तरह लिंक भेजना पड़े… अब आप खुद ही सोच लो की हरामखोर किसे कहते है !

जी.के. अवधिया said...

सुरेश चिपलूनकर जी का कथन "पसन्द-नापसन्द अथवा ऊपर-नीचे वाला फ़ण्डा पूरी तरह खत्म करके, सिर्फ़ "अधिक पढ़े गये" या "इतनी बार पढ़े गये" का एक ही कालम होना चाहिये" बिल्कुल सही है! पसन्द नापसन्द करवाया जा सकता है और टिप्पणी भी करवाई जा सकती है किन्तु अपने पोस्ट को जबरन किसी को पढ़वाना यद्यपि असम्भव नहीं है फिर भी मुश्किल जरूर है। इसलिये लोकप्रियता का पैमाना सिर्फ "अधिक पढ़े गये" ही होना चाहिये।

Mohammed Umar Kairanvi said...

साजिद साहब चिपलूनकर जी मुफ्त की चीज चिटठाजगत में खोट निकाल रहे हैं कहते हैं कि यह स्लो चलता है, यह जो कहें उसे मसवरा माना जाये हम आप जो कहें वह खोट है, बस इतनी सी बात है,

पसंद नापसंद तो होना चाहिये ब्‍लागवाणी से कम तो हमें कतई मन्‍जूर नहीं बस साथ में यह खुला रखा जाये कि पसंद नापसंद कमेंटस का क्‍या कैलकुलेशन है

अगर पसंद नापसंद नहीं होगा तो ब्‍लागर्स ब्‍लागिंग में नहीं डूबेंगे जैसे ही पोस्‍ट करेंगे उन्‍हें फोन करने होगें, मेल करनी होंगी और बहुत से जुगाड करने होंगे, इस डूबने को ही कहते हैं मेरी नजर में ब्‍लागिंग

वर्ना चिटठाजगत में मस्‍त रहो इसमें एक यही कमी है कि वाकई यह एग्रीगेटर है

'हमारीवाणी' पर मेरा ब्‍लाग add नहीं हो रहा है, कृपया 'हमारीवाणी' जवाब दे

rashmi ravija said...

शुक्रिया नई जानकारी के लिए....ब्लोगवाणी की कमी तो सबको खल रही है.

वन्दना said...

ब्लोगवानी की कमी तो सभी को खल रही है और उसका इंतज़ार है और रहेगा।

शिवम् मिश्रा said...

अच्छी जानकारी है,इस को भी देखते है!

सलीम ख़ान said...

KAIRANVI AUR SAJID SE SAHMAT !!! AUR HAAN KHUSHDEEP JEE NE JO BHOPURIYA GANE KA REMIX KIYA WAH QABILE TAREEF HAI

राज भाटिय़ा said...

चलोम पहले हम लड ही ले.... अरे इसी लडाई झग’डे ओर खीचा तानी से तंग आ कर ब्लांग बाणी चली गई, अब जो मिल रहा है, उन का धन्यवाद करने के वजाये उन्हे राय देने के वजाये हम आपस मै लड रहे है, ओर एक अच्छी राय़ को लडाई का मुद्दा बना रहे है, हर काम को समय लगता है, यह नये एग्रीगेट्र भी धीरे धीरे समभल जायेगे, उन्हे वक्त तो दो, हम लोग भी जब नये नये ब्लांगर बने तो कितनी गलतियां करते थे, उस समय हमे कोई गुस्से से राय देता तो कितना बुरा लगता, तो हमे आपस मै प्यार से रहना है, ओर नये एग्रीगेट्र को राय देनी है ना कि उस कि गलतियां निकाल कर उसे भगाना है, वर्ना हम ओर तुम रहेगे वाकी सब भाग जायेगे, क्योकि पागलो के संग कोई रहना नही चाहता

Suresh Chiplunkar said...

भाटिया जी, अच्छी राय को "जेहादी गैंग" कभी नहीं लेती… क्योंकि उन्हें अच्छी चीज़ खाने की आदत ही नहीं है।

साजिद, सलीम और कैरानवी को कौन समझाये कि मैंने यह बात इंड्ली या चिठ्ठाजगत पर जाकर शिकायत के तौर पर नहीं कही है, यह सिर्फ़ सलाह है, जिसे मानना नहीं मानना इंडली और चिठ्ठाजगत के हाथों में है। जिस तरह से ब्लागवाणी को लोगों ने कोसा, गालियाँ दीं, विरोध में पोस्टें लिखीं, वैसा मैंने कभी चिठ्ठाजगत या इंडली के लिये कभी नहीं किया…।

शायद अब "हरामखोरी" का मतलब साजिद को समझ में आ गया होगा…। ब्लागवाणी को बन्द करवाने में सबसे बड़ा हाथ इसी "जेहादी गैंग" का है, जिसने अपने कपड़े फ़ाड़-फ़ाड़ कर, चिल्ला-चिल्लाकर आसमान सिर पर उठा लिया था…

Suresh Chiplunkar said...

काफ़ी समय से, और आज भी चिठ्ठाजगत में मेरा सक्रियता क्रमांक 30 दिखा रहा है, जबकि उससे ऊपर जितने चिठ्ठे हैं… उनके ब्लॉग खोलकर देखा जाये कि वाकई में वे कितने सक्रिय हैं, किसने कितनी पोस्ट लिखीं।

लेकिन क्या कभी इस बात को लेकर मैंने हंगामा मचाया है? नहीं।

मैंने तो कभी चिठ्ठाजगत से यह नहीं पूछा कि, भाई आपका "सक्रियता" नापने का पैमाना क्या है? यह चिठ्ठाजगत की अपनी मर्जी है कि वह किसे रखे, किसे निकाले, किसका चिठ्ठा ऊपर रखे, किसका नीचे रखे…। मुझे शिकायत करने का हक ही नहीं है…

लेकिन लोग पूछें कि -
ब्लागवाणी का पसन्द-नापसन्द का क्या गणित है?
मेरी पोस्ट नीचे कैसे आई, क्यों आई?
ब्लागवाणी ने मेरा चिठ्ठा बन्द क्यों कर दिया?
ब्लागवाणी मेरी बातों का जवाब क्यों नहीं दे रही?……………… ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला…

समझे साजिद, इसे कहते हैं "हरामखोरी"।

उम्दा सोच said...

ब्लागवाणी का स्थगन दुखद है।

सुरेश जी "जेहादी गैंग" भाईयों से कोई पूछे कि क्या फ़्री का मिले तो वो फ़िनाईल भी पी लेंगे???

इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान बना "हरामखोरी" इसके बाद शुरू हुई॥

दिवाकर मणि said...
This post has been removed by the author.
दिवाकर मणि said...

सुरेश जी की उपरोक्त सभी टिप्पणियों से पूर्णरूपेण सहमत.

shikha varshney said...

हमारी वाणी देखा है ..पर ब्लोग्वानी का फिर भी इंतज़ार है.

Mohammed Umar Kairanvi said...

साजिद भाई सीखो चिपलूनकर भाई से सबकुछ कह कर, कहते हैं मैने कुछ नहीं कहा, कभी नहीं कहा,

समझो साजिद, इसे कहते हैं "हरामखोरी"

'हमारीवाणी' पर मेरा ब्‍लाग add नहीं हो रहा है, कृपया 'हमारीवाणी' जवाब दे, वर्ना अपनी दूकान समेट ले

sajid said...

आदरणीय Suresh Chiplunkar जी मुझे आप के इस कथन से समस्या है
क्योंकि भारत के लोग "इतने हरामखोर" हैं
मेरा नाम किसी के साथ न जोड़े मैं पहले एक भारतीय हु

Etips-Blog Team said...

ऐ बिङू ये सब क्या हो रेला

sajid said...

Galatfemiya door horely hai bhai

संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari said...

मैथिली जी और सिरिल जी का हृदय से आभार.

Suresh Chiplunkar said...

मैं भी मैथिली जी का आभार व्यक्त करता हूं…

Suresh Chiplunkar said...

@ साजिद - मैंने सिर्फ़ आपकी बात का जवाब दिया है, और साबित कर दिया है कि जो मैंने कहा वह पूरी तरह सही है…। वरना ब्लागवाणी बन्द ही न होता।

@ कैरानवी - जो लोग "सुझाव", "शिकायत" और "हताशा में कपड़े फ़ाड़ने" में अन्तर नहीं समझ सकते, उन्हें समझाना मुश्किल है।

अजय कुमार झा said...

ब्लोगवाणी का स्थान हिंदी ब्लोग्गिंग में अद्वितीय और अमिट ,था और रहेगा भी , चाहे वो वापस आए या न आए , और उसकी कमी भी इसलिए खलती ही रहेगी । यदि कोई ये समझ रहा है कि फ़िलहाल हिंदी ब्लोग्स पर पाठकों को भेजने में कोई भी ब्लोगवाणी जितना सक्षम है या हो पाएगा तो गलत है । और हर नए प्रयास को लट्ठ दिखाते रहे सब इसी तरह तो वो समय दूर नहीं जब सब खुद ही लिखेंगे और खुद ही पढेंगे ।

sajid said...

Suresh Chiplunkar जी आप ने कुछ भी साबित नहीं क्या है आप गलत हो आप ने ये क्यों कहा क्योंकि भारत के लोग "इतने हरामखोर" हैं क्या आप भारतीय नहीं हो
आप ने मेरा नाम "जेहादी गैंग" के साथ कैसे जोड़ दिया ! आप मेरे ब्लॉग पर देखिये मेरे कमेंट्स पढये कोई भी कही भी कुछ ऐसा लिखा हो जिससे आप मेरा नाम
"जेहादी गैंग" के साथ जोड़ सके तो तो बताइए ! या फिर सारे मुस्लिम को आप "जेहादी गैंग" समझते है क्या यही सच्ची भारतीयता है आप के लिए !
एक सच्चे नागरिक के दिल को उसकी देशभक्ति को ठेस पहुचना !

DR. ANWER JAMAL said...

ज़रूरत आविष्कार की जननी कहलाती है , हमारी वाणी इसी ज़रुरत की कोख से जन्मी है . उम्मीद है कि यह ब्लोग्वानी से बेहतर साबित होगी . हमारा हाथ इसके साथ है . दुआ भी करते हैं . मालिक सबके लिए इसे "शुभ" बनाये .

asad ali said...

आच्छा लगा ये सुनकर कोई तो है हमारी बात सुनने के लिए बरना अब हम तो आधोरे ही रहे जाते
मुबारक हो आपको यह दुनिया 'हमारी वाणी'और हम सबको भी ....सूचना देने का शुक्रिया..
मेरी तरफ से आपको शुभ कामनाये..

दीपक 'मशाल' said...

ये भी सही है..

सुज्ञ said...

सब बातें छोड कर 'हमारीवाणी'का स्वागत करें

Mohammed Umar Kairanvi said...

@सुज्ञ - सब छोडकर कैसे 'हमारीवाणी' का स्‍वागत करूं, जब तक मेरा ब्‍लाग islaminhindi.blogspot.com इस पर add नहीं होगा मैं स्‍वागत नहीं करूंगा, ब्‍लागवाणी ने 10 महीने लगाये थे add करने में यह बतायें कितना समय लगेगा, मैं प्रतीक्षा कर सकता हूं

again:
'हमारीवाणी' पर मेरा ब्‍लाग add नहीं हो रहा है, कृपया 'हमारीवाणी' जवाब दे

ऐसे पोस्ट भी टॉप पर आ जाते है

भय्या पत्नी की भी अजीब ही महिमा है। पता है कि आप कार्यालय में हैं, अब रोज़ ही जाते हैं तो वहीं होंगे। लेकिन श्रीमती जी का फोन पर एक ही सवाल होता है ‘कहां हो?’। अब बन्दा परेशान! हम भी चुटकी लेने के लिए बोल देते हैं कि ‘झुमरी तलैय्या में’! तो भड़क जाती हैं, ‘सीधे-सीधे नहीं कह सकते कि ऑफिस में हो’। अब श्रीमती जी जब पता ही था तो मालूम क्यों कर रही थी? लेकिन इतनी हिम्मत किसकी है कि यह मालूम कर ले?

श्रीमती जी की सबसे पंसदीदा चीज़ होती है शापिंग। अब शापिंग तो शापिंग है, ज़रूरत हो या ना हो लेकिन करनी है तो करनी है। उस पर तुर्रा यह कि इतनी महंगी वस्तु इतनी सस्ती ले आई। दुकानदार से दाम तय करने की भी अलग ही अदा होती है। पता नहीं श्रीमती जी दुकानदार को बेवकूफ बनाती हैं या दुकानदार श्रीमती जी को? लेकिन कटता तो बेचारा पति ही है।

थके हारे घर वापिस आए और आते ही आपके हाथ में चाय की प्याली आ गई तो समझो मामला गड़बड़ है। रोज़ तो चाय के लिए कहते-कहते थक जाते हैं, उस पर ज्यादा आवाज़ लगा ली तो सवाल ‘खुद क्यों नहीं बना लेते, देखते नहीं कितनी व्यस्त हूँ आपके बच्चों में’। ‘मेंरे बच्चे!’ मतलब अब यह बच्चे केवल मेरे हो गए। वैसे पत्नी के साथ छोटा तो कुछ होता ही नहीं है, चप्पल की ऐड़ी भी टूट गई तो समझो बड़ा नुकसान है। रास्ते में श्रीमती जी अपनी चप्पल तुड़वा बैठी, तो हमारे मूंह से निकल गया कि देख कर चल लेती। बस फिर क्या था ‘सस्ती चप्पलें दिलवाओगे तो यही होगा ना? इन्हे तो बस यही पसंद है कि रात-दिन घर में खपते रहो और कुछ मांगो मत। कहा था किसी अच्छे ब्राण्ड की दिलवा दो, लेकिन फर्क किसे पड़ता है? रास्ते में परेशान तो मैं हो रही हूँ ना।’ हम भी तपाक से बोले ‘लेकिन यह तुमने अपनी मर्ज़ी से ही तो खरीदी थी।’ जैसी दुकान पर ले जाओगे तो वैसी ही चप्पले खरीदूंगी ना।’ हमने मालूम किया ’लेकिन तुमने हमसे कब कहा था नई चप्पलों के लिए’? झट से बोली ‘तुम सुनते ही कब हो मेरी बात?

रास्ते में एक लड़की हमें देख रही थी, अब किसी की आंखे तो बंद कर नहीं सकते। परेशानी की बात यह हो गई कि श्रीमती जी ने उसे हमें देखते हुए देख लिया। वैसे अन्दर की बात तो यह है कि आप यमराज को तो मना सकते हैं लेकिन रूठी हुई पत्नी को मनाना नामुमकिन है! बात पत्नी की हो और सास का ज़िक्र ना आए? ‘सास’ नाम सुनते ही पत्नी एकदम से बहु बन जाती है। सास के सामने तो माँ जी, माँ जी, लेकिन पति के सामने बात ‘तुम्हारी माँ जी’ पर आ जाती है। अजीब रिश्ता है भय्या, एक-दूसरे को देखकर तेवर बदलना कोई समझ ही नहीं पाया है।

अंत में बस आपसे यही प्रार्थना है कि यह सब बाते मेंरी पत्नी को मत बताना, वर्ना!



अब चिटठा जगत मैं ऐसे ऐसे पोस्ट भी टॉप पर आ जाते है
क्या होगा चिटठा जगत का