सोमवार, 26 जुलाई 2010

ये पोस्ट bharat भारती की है क्रप्या इसे पढ़कर टिपण्णी ज़रूर दो









धर्म या कलंक
हिन्दू धर्म कम कलंक अधिक है ,इस धर्म ने हम को बुजदिल बनाया हे हम इसी के कारन एक हज़ार सालों तक गुलाम बन कर रहे, अब समय आगया हे कि हम इस कलंक से अपना पिंड छुड़ा लें ,
संभव हे कि कुछ महापुर्शुं को यह कथन बुरा लगने वाला हो ,परन्तु फिर भी सोचो ,मन और बुद्धि से सोचो ,दिल से नहीं दिमाग से सोचो ,जिस का कोई धर्म गुरु न हो वः धर्म कैसा ,,
आप कहेगे धर्म गुरु हे ,उधाहरण में प्रस्तुत करोगे क्रष्ण और शिव को ,,हाँ में यही तो कहलवाना चाहता था बेटा ,,देख तो कृष्ण परायी महिला से प्यार कर के भगवन बन गया ,और जीवन भर अपनी पत्नी की, जिसका नाम ,रुकमनी, था जो वास्तव मैं उसकी पत्नी थी , उसने सुध न ली ,बस वः तो एक परायी महिला ,राधा, के संग रास लीला मनाया किये , उस ने बचपन में मक्खन चुराया ,तो इस से हमें क्या सीख मिली ,,क्या हम भी चोरी करना सीखें ,,आज हम कृष्ण जन्म ष्टमी पर आकाश में दही भरी हांड़ी बाधकरउसे बालकों से भुढ़वाते हें तो क्या बालकों को बताएं कि वः दूर से दूर रखे घर के मक्खन को यों ही चुराया करें ,,
,,श्रीमद भगवद पुराण,, में लिखा हे कि वः तालाब में स्नान करती महिलाओं के कपडे उठा कर पेड़ पर चला जाता और महिलाएं अपने वस्त्र मांगती तो कहता कि बाहर निकल कर मांगो ,वः बेचारी आगे पीछे अपने अश्लील अंग्गों पर हाथ रख कर बाहर आतीं तो वः महोदय कहते कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो ,,,,,वाह भय्ये वाह ,,, अर्थात सब कुछ देखकर ही उन के वस्त्र देता था, क्रष्ण बाबू ,,,
और ,शिव जी, महाराज, की क्या बात करोगे ,,,उस ने अपने और अपनी पारबती के अश्लील अंग्गों लिंगों की ही हम से पूजा करादी,,, और हम चुप चाप शिव के लिंग की पारबती की योनी में गड़े खड़े के दर्शन करते रहे ,,,
और अगर पुरषोत्तम राम बाबु की पूछोगे तो बस चुप ही भली हे ,,अरे उसे किसने कहा था ,सूर्पनखा के नाक कान काटने को, उस के नाक कान क्या काटे अपनी नाक ही कट्वाली ,,.अपनी घरवाली को ही उठ्वादिया ,,,और जानते हो उस की घरवाली सीता अपनी मर्जी से रावण के साथ गयी थी ,,,नही मानते तो में बताउं,, वः धनुष जो किसी भी य्वराज से नहीं उठा था वः सीता ने उठा कर अलग स्थान पर रख दया था ,,यह देख कर ही तो राजा जनक ने कहता था कि मैं अपनी पुत्री का विवाह उस से करूंगा जो इस धनुष पर डोरी चढाये गा ,तो जब उसने सीता का स्यन्म्वर रचाया तो उसमें रावण भी आया था और उस शे भी वः धनुष उठ न सकता था जिस का अर्थ यह हे कि सीता रावण से अधिक बलवान थी ,,अगर वः चाहती तो उसको मार भागाती परन्तु उसने ऐसा न किया ,,क्यों ,,,इस लिए कि वः स्वयं जाना चाहती थी ,,, सच में ,,

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ये bharat भारती की पोस्ट है जो FRIDAY, JULY 23, २०१० को पोस्ट की गई है आप सब भी एक नज़र डाले
धन्यवाद !

8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bha...........

Mamta ने कहा…

Maine bharat भारती की पोस्ट Par hi padh liya tha...
thanks

Raji Kumar ने कहा…

Nice

K.P.Chauhan ने कहा…

hamko apne poorvajon kaa is tarh se apmaannahi karnaa chahiye,wo hamaare devi devtaa bhi hain par guru nahin the ,guru banaaNE KE LIYE HAMAARE DHARM ME BHUT GURU HAIN ,
PLEASE FIR AISEE TIPPADI NAA KAREN JISSE KISI KE BHI DHARM KAA APMAAN HO

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

बढ़िया लेख है अभी पूरा तो नहीं पढ़ा पर पढेंगे जरुर ....
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....

मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

hamarivani ने कहा…

nice

hamarivani ने कहा…

nice

बेनामी ने कहा…

तुम कीचड़ में बैठे उस सूअर की तरह हो जिसे मल और भोजन में अंतर समझ नहीं आ सकता .