धर्म या कलंक
हिन्दू धर्म कम कलंक अधिक है ,इस धर्म ने हम को बुजदिल बनाया हे हम इसी के कारन एक हज़ार सालों तक गुलाम बन कर रहे, अब समय आगया हे कि हम इस कलंक से अपना पिंड छुड़ा लें ,
संभव हे कि कुछ महापुर्शुं को यह कथन बुरा लगने वाला हो ,परन्तु फिर भी सोचो ,मन और बुद्धि से सोचो ,दिल से नहीं दिमाग से सोचो ,जिस का कोई धर्म गुरु न हो वः धर्म कैसा ,,
आप कहेगे धर्म गुरु हे ,उधाहरण में प्रस्तुत करोगे क्रष्ण और शिव को ,,हाँ में यही तो कहलवाना चाहता था बेटा ,,देख तो कृष्ण परायी महिला से प्यार कर के भगवन बन गया ,और जीवन भर अपनी पत्नी की, जिसका नाम ,रुकमनी, था जो वास्तव मैं उसकी पत्नी थी , उसने सुध न ली ,बस वः तो एक परायी महिला ,राधा, के संग रास लीला मनाया किये , उस ने बचपन में मक्खन चुराया ,तो इस से हमें क्या सीख मिली ,,क्या हम भी चोरी करना सीखें ,,आज हम कृष्ण जन्म ष्टमी पर आकाश में दही भरी हांड़ी बाधकरउसे बालकों से भुढ़वाते हें तो क्या बालकों को बताएं कि वः दूर से दूर रखे घर के मक्खन को यों ही चुराया करें ,,
,,श्रीमद भगवद पुराण,, में लिखा हे कि वः तालाब में स्नान करती महिलाओं के कपडे उठा कर पेड़ पर चला जाता और महिलाएं अपने वस्त्र मांगती तो कहता कि बाहर निकल कर मांगो ,वः बेचारी आगे पीछे अपने अश्लील अंग्गों पर हाथ रख कर बाहर आतीं तो वः महोदय कहते कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो ,,,,,वाह भय्ये वाह ,,, अर्थात सब कुछ देखकर ही उन के वस्त्र देता था, क्रष्ण बाबू ,,,
और ,शिव जी, महाराज, की क्या बात करोगे ,,,उस ने अपने और अपनी पारबती के अश्लील अंग्गों लिंगों की ही हम से पूजा करादी,,, और हम चुप चाप शिव के लिंग की पारबती की योनी में गड़े खड़े के दर्शन करते रहे ,,,
और अगर पुरषोत्तम राम बाबु की पूछोगे तो बस चुप ही भली हे ,,अरे उसे किसने कहा था ,सूर्पनखा के नाक कान काटने को, उस के नाक कान क्या काटे अपनी नाक ही कट्वाली ,,.अपनी घरवाली को ही उठ्वादिया ,,,और जानते हो उस की घरवाली सीता अपनी मर्जी से रावण के साथ गयी थी ,,,नही मानते तो में बताउं,, वः धनुष जो किसी भी य्वराज से नहीं उठा था वः सीता ने उठा कर अलग स्थान पर रख दया था ,,यह देख कर ही तो राजा जनक ने कहता था कि मैं अपनी पुत्री का विवाह उस से करूंगा जो इस धनुष पर डोरी चढाये गा ,तो जब उसने सीता का स्यन्म्वर रचाया तो उसमें रावण भी आया था और उस शे भी वः धनुष उठ न सकता था जिस का अर्थ यह हे कि सीता रावण से अधिक बलवान थी ,,अगर वः चाहती तो उसको मार भागाती परन्तु उसने ऐसा न किया ,,क्यों ,,,इस लिए कि वः स्वयं जाना चाहती थी ,,, सच में ,,
हिन्दू धर्म कम कलंक अधिक है ,इस धर्म ने हम को बुजदिल बनाया हे हम इसी के कारन एक हज़ार सालों तक गुलाम बन कर रहे, अब समय आगया हे कि हम इस कलंक से अपना पिंड छुड़ा लें ,
संभव हे कि कुछ महापुर्शुं को यह कथन बुरा लगने वाला हो ,परन्तु फिर भी सोचो ,मन और बुद्धि से सोचो ,दिल से नहीं दिमाग से सोचो ,जिस का कोई धर्म गुरु न हो वः धर्म कैसा ,,
आप कहेगे धर्म गुरु हे ,उधाहरण में प्रस्तुत करोगे क्रष्ण और शिव को ,,हाँ में यही तो कहलवाना चाहता था बेटा ,,देख तो कृष्ण परायी महिला से प्यार कर के भगवन बन गया ,और जीवन भर अपनी पत्नी की, जिसका नाम ,रुकमनी, था जो वास्तव मैं उसकी पत्नी थी , उसने सुध न ली ,बस वः तो एक परायी महिला ,राधा, के संग रास लीला मनाया किये , उस ने बचपन में मक्खन चुराया ,तो इस से हमें क्या सीख मिली ,,क्या हम भी चोरी करना सीखें ,,आज हम कृष्ण जन्म ष्टमी पर आकाश में दही भरी हांड़ी बाधकरउसे बालकों से भुढ़वाते हें तो क्या बालकों को बताएं कि वः दूर से दूर रखे घर के मक्खन को यों ही चुराया करें ,,
,,श्रीमद भगवद पुराण,, में लिखा हे कि वः तालाब में स्नान करती महिलाओं के कपडे उठा कर पेड़ पर चला जाता और महिलाएं अपने वस्त्र मांगती तो कहता कि बाहर निकल कर मांगो ,वः बेचारी आगे पीछे अपने अश्लील अंग्गों पर हाथ रख कर बाहर आतीं तो वः महोदय कहते कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो ,,,,,वाह भय्ये वाह ,,, अर्थात सब कुछ देखकर ही उन के वस्त्र देता था, क्रष्ण बाबू ,,,
और ,शिव जी, महाराज, की क्या बात करोगे ,,,उस ने अपने और अपनी पारबती के अश्लील अंग्गों लिंगों की ही हम से पूजा करादी,,, और हम चुप चाप शिव के लिंग की पारबती की योनी में गड़े खड़े के दर्शन करते रहे ,,,
और अगर पुरषोत्तम राम बाबु की पूछोगे तो बस चुप ही भली हे ,,अरे उसे किसने कहा था ,सूर्पनखा के नाक कान काटने को, उस के नाक कान क्या काटे अपनी नाक ही कट्वाली ,,.अपनी घरवाली को ही उठ्वादिया ,,,और जानते हो उस की घरवाली सीता अपनी मर्जी से रावण के साथ गयी थी ,,,नही मानते तो में बताउं,, वः धनुष जो किसी भी य्वराज से नहीं उठा था वः सीता ने उठा कर अलग स्थान पर रख दया था ,,यह देख कर ही तो राजा जनक ने कहता था कि मैं अपनी पुत्री का विवाह उस से करूंगा जो इस धनुष पर डोरी चढाये गा ,तो जब उसने सीता का स्यन्म्वर रचाया तो उसमें रावण भी आया था और उस शे भी वः धनुष उठ न सकता था जिस का अर्थ यह हे कि सीता रावण से अधिक बलवान थी ,,अगर वः चाहती तो उसको मार भागाती परन्तु उसने ऐसा न किया ,,क्यों ,,,इस लिए कि वः स्वयं जाना चाहती थी ,,, सच में ,,
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ये bharat भारती की पोस्ट है जो FRIDAY, JULY 23, २०१० को पोस्ट की गई है आप सब भी एक नज़र डाले
धन्यवाद !
"माँ को भी नमन नहीं कर सकते है, सिवाय अल्लाह के - तारकेश्वर गिरी."
7 Comments - Hide Original Post
तारकेश्वर जी, दिखावे के लिए क्यों गंवाना चाहते हैं "वन्दे मातरम"?
सहसपुरिया जी, आप अपनी ही बात पर सहमती नहीं बना पा रहे हैं. एक तरफ तो कह रहें हैं की ( की जब कि ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि अगर वह मनुष्यों में से किसी को नमन करने की अनुमति देता तो वह पुत्र के लिए अपनी माँ और पत्नी के लिए अपने पति को नमन करने की अनुमति देता.) लेकिन दूसरी तरफ खुदी कह रहे हैं की (हम अपनी माँ से प्यार करते हैं, परन्तु उस प्रेम को दर्शाने के लिए उनकी पूजा नहीं करते हैं. यह हमारी श्रद्धा नहीं है कि हम ईश्वर के सिवा किसी और को नमन करें, यहाँ तक कि माँ को भी नमन नहीं कर सकते हैं.)
येही तो समस्या है आप जैसे अरबियन सोच रखने वालो की. जो की माँ को भी नमन नहीं करते हैं. और येही वजह है आप की, कि आप वन्दे मातरम का बिना सोचे समझे विरोध करते हैं.
posted by Tarkeshwar Giri at 7:51 PM on Jul 9, 2010
अरेबियन सोच...उजाड़ रेगिस्तानी बंजर रेतीली सोच... भारत भी रेगिस्तान बनता जा रहा है धीरे धीरे
09 July, 2010 21:10
अजी हमे क्या यह उन की सोच है जो चाहे करे, जो चाहे ना करे
09 July, 2010 21:30
पत्थर पर सर फोड़ कर देख लिया...
महफूज जी, फिरदौस और फौजिया जैसे गिनती के लोग हैं, बाकी अधिकतर तालिबानी सोच रखते हैं..
09 July, 2010 22:12
गिरी जी आपकी हमेशा यही यही समस्या रही है इक आप पढ़ें बगेर ही कमेंट करते हैं . पहली बात तो ये कमेंट शाहनवाज़ भाई के ARTICLE से ही QUOTE किया था.
दूसरी बात ये इस में आपके सवाल का जवाब है. आप से अनुरोध है की आप इक बार दुबारा सब पर नज़र डालें .
09 July, 2010 22:45
tarkeswar ji sadar pranam,,
aapka comment mila hardik dhanyawaad aap jaise log rahenge to likhne ki himmat badhegi,, plz mera blog jarur padhen
10 July, 2010 11:19
giri ji sadar pranam,,
aapke comment ke liya hardik dhanyawaad,, aapke jaise log blog padhenge to likhne ki himmat badhegi,, plz mera blog padhte rahen
10 July, 2010 11:21
@गिरी जी शायद आपने मुलाकात के समय हमारे द्वारा भेंट की पत्रिका वंदेईश्वरम् नही पढ़ी कृप्या उसे ध्यान से पढ़ें आपको आपके प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा
10 July, 2010 11:23